उत्तराखंड पंचायत चुनाव: न बीजेपी हारी न कांग्रेस, दोनों दलों ने मनाया जश्न और बांटी मिठाइयां

देहरादून: चुनाव परिणाम जारी होने के बाद अक्सर राजनीतिक दलों के दफ्तरों में भी उनकी जीत का जश्न या हार की मायूसी दिखती है. लेकिन उत्तराखंड पंचायत चुनाव में इस बार कुछ अलग ही दिख रहा है. पहली बार कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियों के दफ्तरों से जश्न मनाया गया. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही उत्तराखंड पंचायत चुनाव में अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. स्थिति यह है कि कांग्रेस भवन में भी मिठाइयां बंट रही हैं और भाजपाई नेता भी आतिशबाजी कर खूब थिरक रहे हैं.
उत्तराखंड के 12 जिलों में हुए पंचायत चुनाव के परिणाम को लेकर राजनीतिक दलों ने दुविधा पैदा कर दी है. अक्सर चुनाव परिणाम आने के बाद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के दफ्तर जीत हार के परिणाम को बयां कर देते थे, लेकिन इस बार तस्वीर कुछ और नजर आ रही है.
दरअसल, चुनाव परिणाम जारी होने के बाद भाजपा के दफ्तर में भी जीत का जश्न मनाया जा रहा है और कांग्रेस भवन में कार्यकर्ता मुंह मीठा कर रहे हैं. मौजूदा पंचायत चुनाव को कांग्रेस अपने पक्ष में बताकर अधिकतर सीटों पर कब्जा करने का दावा कर रही है. इस दौरान पार्टी के नेता चुनाव परिणामों में भाजपा के कई बड़े नेताओं की हार का लेखा-जोखा भी दे रहे हैं.
कांग्रेस ने भी किया अपनी जीत का दावा: वहीं कि कांग्रेस का दावा है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि बीजेपी वाले कौन सी मिठाई बांट रहे हैं और इसके पीछे क्या कारण है यह समझना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि भाजपा के दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा है. अब यह समझ नहीं आ रहा कि दु:ख की घड़ी में यह मिठाई वह कैसे खा पा रहे हैं.
बागियों को भी जनता से सिखाया सबक: उत्तराखंड कांग्रेस यह भी दावा कर रही है कि कांग्रेस को दगा देने वालों को भी इस बार पंचायत चुनाव में जनता ने सबक सिखाया है. कांग्रेस का दावा है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गई भाजपा की विधायक सरिता आर्या के बेटे रोहित आर्य को करारी हार मिली है.
राजेंद्र भंडारी की पत्नी भी चुनाव हारी: इसी तरह बदरीनाथ से कांग्रेस के विधायक रहे राजेंद्र भंडारी ने भी कांग्रेस को धोखा दिया और अब उनकी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रही पत्नी रजनी भंडारी भी इस चुनाव में बुरी तरह हारी है.
मंत्री सौरभ बहुगुणा के गढ़ में भी बीजेपी को मिली हार: इसके अलावा विजय बहुगुणा के पुत्र और भाजपा सरकार में मंत्री सौरभ बहुगुणा के क्षेत्र में भी भाजपा के 6 सीटें हारने को कांग्रेस बीजेपी की करारी हार मान रही है. चुनाव हारने वालों में कांग्रेस लैंडस्डाउन से भाजपा विधायक दलीप रावत की पत्नी नीतू का नाम भी ले रही है.
कई और दिग्गजों के नाते-रिश्तेदार हारे: वहीं, भाजपा के दिवंगत नेता कैलाश गहतोड़ी के परिजनों के भी चुनाव हारने का दावा किया जा रहा है. लोहाघाट से भाजपा के पूर्व विधायक पूरन सिंह की बेटी के भी चुनाव हारने को कांग्रेस, भाजपा के लिए बड़ा सबक बता रही है. इसके अलावा भाजपा विधायक महेश जीना के बेटे करन के भी क्षेत्र पंचायत सीट पर हारने से कांग्रेस गदगद दिख रही है.
निर्दलियों को अपना बनाने में जुटी पार्टियां: राष्ट्रीय दल त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सिंबल आवंटित नहीं करते, लिहाजा इसी बात का फायदा शायद राजनीतिक दल भी उठा रहे हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल निर्दलीय रूप से चुनाव जीतकर आने वाले प्रत्याशियों को अपनी विचारधारा का बताने में जुटे हुए हैं. जाहिर है कि यह पता करना मुश्किल है कि कि निर्दलीय की भावना राजनीतिक रूप से किस दल के साथ है.
अभी भी एक परीक्षा बाकी: अभी क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अब चुनाव किए जाने हैं. ऐसे में भविष्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच इस सीधी चुनावी लड़ाई का परिणाम क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष की संख्या और जिला पंचायत अध्यक्ष की गिनती के बाद ही निकल सकता है. हालांकि इस मामले में कांग्रेस भाजपा पर चुनाव परिणाम आने से पहले ही धन बल के जरिए जीते हुए प्रत्याशियों को खरीदने और चुनाव में गड़बड़ी करने का भी आरोप लगा रही है.
बीजेपी ने जश्न मनाया: भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में भी नेताओं ने जमकर डांस किया और आतिशबाजी करते हुए अपनी जीत को भी जाहिर करने की कोशिश की. भाजपा विधायकदेहरादून: चुनाव परिणाम जारी होने के बाद अक्सर राजनीतिक दलों के दफ्तरों में भी उनकी जीत का जश्न या हार की मायूसी दिखती है. लेकिन उत्तराखंड पंचायत चुनाव में इस बार कुछ अलग ही दिख रहा है. पहली बार कांग्रेस-बीजेपी दोनों ही पार्टियों के दफ्तरों से जश्न मनाया गया. कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही उत्तराखंड पंचायत चुनाव में अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं. स्थिति यह है कि कांग्रेस भवन में भी मिठाइयां बंट रही हैं और भाजपाई नेता भी आतिशबाजी कर खूब थिरक रहे हैं.
उत्तराखंड के 12 जिलों में हुए पंचायत चुनाव के परिणाम को लेकर राजनीतिक दलों ने दुविधा पैदा कर दी है. अक्सर चुनाव परिणाम आने के बाद प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के दफ्तर जीत हार के परिणाम को बयां कर देते थे, लेकिन इस बार तस्वीर कुछ और नजर आ रही है.
दरअसल, चुनाव परिणाम जारी होने के बाद भाजपा के दफ्तर में भी जीत का जश्न मनाया जा रहा है और कांग्रेस भवन में कार्यकर्ता मुंह मीठा कर रहे हैं. मौजूदा पंचायत चुनाव को कांग्रेस अपने पक्ष में बताकर अधिकतर सीटों पर कब्जा करने का दावा कर रही है. इस दौरान पार्टी के नेता चुनाव परिणामों में भाजपा के कई बड़े नेताओं की हार का लेखा-जोखा भी दे रहे हैं.
कांग्रेस ने भी किया अपनी जीत का दावा: वहीं कि कांग्रेस का दावा है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सूर्यकांत धस्माना कहते हैं कि बीजेपी वाले कौन सी मिठाई बांट रहे हैं और इसके पीछे क्या कारण है यह समझना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि भाजपा के दिग्गजों को हार का मुंह देखना पड़ा है. अब यह समझ नहीं आ रहा कि दु:ख की घड़ी में यह मिठाई वह कैसे खा पा रहे हैं.
बागियों को भी जनता से सिखाया सबक: उत्तराखंड कांग्रेस यह भी दावा कर रही है कि कांग्रेस को दगा देने वालों को भी इस बार पंचायत चुनाव में जनता ने सबक सिखाया है. कांग्रेस का दावा है कि कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गई भाजपा की विधायक सरिता आर्या के बेटे रोहित आर्य को करारी हार मिली है.
राजेंद्र भंडारी की पत्नी भी चुनाव हारी: इसी तरह बदरीनाथ से कांग्रेस के विधायक रहे राजेंद्र भंडारी ने भी कांग्रेस को धोखा दिया और अब उनकी पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष रही पत्नी रजनी भंडारी भी इस चुनाव में बुरी तरह हारी है.
मंत्री सौरभ बहुगुणा के गढ़ में भी बीजेपी को मिली हार: इसके अलावा विजय बहुगुणा के पुत्र और भाजपा सरकार में मंत्री सौरभ बहुगुणा के क्षेत्र में भी भाजपा के 6 सीटें हारने को कांग्रेस बीजेपी की करारी हार मान रही है. चुनाव हारने वालों में कांग्रेस लैंडस्डाउन से भाजपा विधायक दलीप रावत की पत्नी नीतू का नाम भी ले रही है.
कई और दिग्गजों के नाते-रिश्तेदार हारे: वहीं, भाजपा के दिवंगत नेता कैलाश गहतोड़ी के परिजनों के भी चुनाव हारने का दावा किया जा रहा है. लोहाघाट से भाजपा के पूर्व विधायक पूरन सिंह की बेटी के भी चुनाव हारने को कांग्रेस, भाजपा के लिए बड़ा सबक बता रही है. इसके अलावा भाजपा विधायक महेश जीना के बेटे करन के भी क्षेत्र पंचायत सीट पर हारने से कांग्रेस गदगद दिख रही है.
निर्दलियों को अपना बनाने में जुटी पार्टियां: राष्ट्रीय दल त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में सिंबल आवंटित नहीं करते, लिहाजा इसी बात का फायदा शायद राजनीतिक दल भी उठा रहे हैं. कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल निर्दलीय रूप से चुनाव जीतकर आने वाले प्रत्याशियों को अपनी विचारधारा का बताने में जुटे हुए हैं. जाहिर है कि यह पता करना मुश्किल है कि कि निर्दलीय की भावना राजनीतिक रूप से किस दल के साथ है.
अभी भी एक परीक्षा बाकी: अभी क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष और जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए अब चुनाव किए जाने हैं. ऐसे में भविष्य में भाजपा और कांग्रेस के बीच इस सीधी चुनावी लड़ाई का परिणाम क्षेत्र पंचायत अध्यक्ष की संख्या और जिला पंचायत अध्यक्ष की गिनती के बाद ही निकल सकता है. हालांकि इस मामले में कांग्रेस भाजपा पर चुनाव परिणाम आने से पहले ही धन बल के जरिए जीते हुए प्रत्याशियों को खरीदने और चुनाव में गड़बड़ी करने का भी आरोप लगा रही है.
बीजेपी ने जश्न मनाया: भारतीय जनता पार्टी कार्यालय में भी नेताओं ने जमकर डांस किया और आतिशबाजी करते हुए अपनी जीत को भी जाहिर करने की कोशिश की. भाजपा विधायक खजान दास कहते हैं कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने अपनी हार कबूल कर ली थी. इसलिए अब परिणाम आने के बाद कांग्रेस किस बात की मिठाई बांट रही है, यह कहना मुश्किल है.
उत्तराखंड में शायद ये पहले चुनाव होगा जब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के ही दफ्तरों में से कहीं भी सन्नाटा नहीं दिखाई दिया और ना ही हार का ग़म या समीक्षा की बात कही जाएगी. मजे की बात यह है कि आंकड़े भी फिलहाल दोनों ही दलों को कोई खास बढ़त बनाते हुए नहीं दिखा रहे हैं. उल्टे निर्दलीयों का राज्य भर में दबदबा नजर आ रहा है. यही कारण है कि इन्हीं निर्दलियों को अपनी पार्टी की मानसिकता वाला प्रत्याशी बताकर दोनों दल अपनी अपनी जीत का दम भर रहे हैं. खजान दास कहते हैं कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव से पहले ही कांग्रेस ने अपनी हार कबूल कर ली थी. इसलिए अब परिणाम आने के बाद कांग्रेस किस बात की मिठाई बांट रही है, यह कहना मुश्किल है.
उत्तराखंड में शायद ये पहले चुनाव होगा जब भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों के ही दफ्तरों में से कहीं भी सन्नाटा नहीं दिखाई दिया और ना ही हार का ग़म या समीक्षा की बात कही जाएगी. मजे की बात यह है कि आंकड़े भी फिलहाल दोनों ही दलों को कोई खास बढ़त बनाते हुए नहीं दिखा रहे हैं. उल्टे निर्दलीयों का राज्य भर में दबदबा नजर आ रहा है. यही कारण है कि इन्हीं निर्दलियों को अपनी पार्टी की मानसिकता वाला प्रत्याशी बताकर दोनों दल अपनी अपनी जीत का दम भर रहे हैं.